श्वेताश्वतर उपनिषद वाक्य
उच्चारण: [ shevaashevter upenised ]
उदाहरण वाक्य
- सप्रतिस्थिति श्वेताश्वतर उपनिषद का परिगणन कृष्ण यजुर्वेद अंतर्गत किया जाता है।
- सप्रतिस्थिति श्वेताश्वतर उपनिषद का परिगणन कृष्ण यजुर्वेद अंतर्गत किया जाता है।
- 10) में श्वेताश्वतर उपनिषद ने ब्रह्म को ही महेश्वर कहा है।
- श्वेताश्वतर उपनिषद 4 / 5 में प्रकृति के लिए-अजा और परमात्मा ।
- यजुर्वेद के शतरुद्रिय अध्याय, तैत्तिरीय आरण्यक और श्वेताश्वतर उपनिषद में शिव को ईश्वर माना गया है।
- तथापि कुछ उपनिषदों में, मुख्य रूप से [[श्वेताश्वतर उपनिषद] में सांख्य के सिद्धांतों का प्रतिपादन मिलता है।
- श्वेताश्वतर उपनिषद में जिस दर्शन को प्रस्तुत किया गया है वह ' भोक्ता भोग्यं प्रेरितारं ' के त्रैत का दर्शन है।
- इसी मन्त्र का श्वेताश्वतर उपनिषद 4 / 6 में शंकर अर्थ करते हैं-परमेश्वर नित्य शुद्ध बुद्ध स्वभाव वाला सबको देखता है ।
- उपनिषद गद्य और पद्य दोनों में हैं, जिसमें प्रश्न, माण्डूक्य, केन, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और कौषीतकि उपनिषद गद्य में हैं तथा केन, ईश, कठ और श्वेताश्वतर उपनिषद पद्य में हैं।
- वल्लभ ने भक्ति पथ के तीन सौपान माने हैं-(क) गुरु सेवा-यथा श्वेताश्वतर उपनिषद में कहा गया है-' यस्य देवे पराभक्ति: यथा देवे तथा गुरी ' ।
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